एक बार की बात है। मैं अपने मामा के घर जा रहा था। उस दिन काफी तेज बारिश हो रही थी। मैं बस में बैठ गया। तभी एक सज्जन आए और मेरी बगल वाली सीट पर बैठ गए। बस चलने पर उन्होंने मुझसे बातचीत शुरू कर दी। पहले बात मौसम से शुरू हुई, फिर उन्होंने मुझसे सारी जानकारी ले ली। मैं भी बातों में मस्त होकर उन्हें सारी बात बताता रहा। कुछ देर के बाद बस रास्ते में चाय-नाश्ते के लिए रुकी। हम दोनों नीचे उतरे, तब उन्होंने मुझसे चाय की पेशकश की। मैंने भी रजामंदी दे दी। चाय पीकर हम दोनों बस में आकर बैठ गए। अब हम दोनों में गहरी मित्रता हो गई थी। बस में आकर उन्होंने अपने बैग से मिठाई निकाली और बोले, ‘लो बेटे, मिठाई खाओ, आज मेरे बेटे का जन्मदिन है। उसी के लिए ले जा रहा हूं।’ मैंने थोड़ी ना-नुकुर की। लेकिन उनकी जिद के आगे हार गया। मैंने दो बर्फियां उठा लीं। मेरे साथ-साथ उन्होंने भी वहीं मिठाई खाई, इसलिए मुझे उन पर भरोसा हो गया था। फिर बातों ही बातों में कब मेरी आंख लग गई, मुझे पता भी न चला। करीब एक घंटे के बाद जब मेरी आंख खुली, तो बस मेरी मंजिल तक पहुंचने वाली थी। मैंने राहत की सांस ली और अपना सामान निकालने के लिए जैसे ही उठा, तो मेरा बैग गायब था। मैंने पूरी बस छान मारी। बगल वाले सज्जन भी गायब थे। लोगों से पूछने पर पता चला कि वह तो कब के उतर गए हैं। थोड़ी देर में मुझे समझ आ गया कि जरूर वह नशाखुरानी गिरोह का सदस्य था, जो मुझे बेहोशी की दवा खिलाकर बैग लेकर चंपत हो गया। मुझे बड़ों की सलाह की याद आने लगी। सफर मे किसी का भरोसा ना करने कि पहले ये सब मजाक लगता था जब मेरे साथ हुआ तब एह्सास हुआ
जब तक चोट खुद को ना लगे दर्द समझ नही आता .......
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