बात उन दिनों की है, जब मैं मात्र आठ वर्ष का था। मेरा एक दोस्त था, जो मूर्ति बनाने का शौक रखता था। जब भी दुर्गा पूजा में वह मूर्तियों को देखता, तो बोलता ‘मैं भी इसी तरह की मूर्तियां बनाना चाहता हूं।’उसकी बात सुनकर सारे दोस्त मजाक उड़ाते। पर मैं गौर से उसे देखता रहता। शुरू में वह घर वालों से छिपाकर कागज की दफ्ती काटकर उससे मूर्ति बनाता था। जब कोई देख लेता, तो खूब डांट पड़ती। ‘ये लड़का पढ़ाई-लिखाई छोड़कर केवल मूर्तियां बनाता रहता है।’ पर वह अपने सपने को पूरा करने का प्रयास करता रहता। फिर पड़ोस में एक भैया के कहने पर उसने मिट्टी की मूर्तियों पर हाथ आजमाना शुरू कर दिया। पर इससे भी उसके घर वालों को तकलीफ होती थी। दरअसल पूरे घर में मिट्टी फैल जाती थी। उसकी मम्मी भी उसे खूब डांटती थी। धीरे-धीरे उसकी प्रैक्टिस बढ़ती गई और वह अपनी कला में माहिर होता गया। आज उसकी उम्र 18 वर्ष है और बिना किसी सांचे के वह छोटी-छोटी मूर्तियां बना लेता है। आज जब लोग उसकी कारीगरी देखते हैं, तो दंग रह जाते हैं। बिना किसी गुरु के उसने अपनी कला को इतना अधिक निखार लिया है कि अच्छे-अच्छे कलाकारों के समकक्ष आसानी से खड़ा हो सकता है। उसमें अपने स्कूल व कॉलेज में भी कई मूर्तियां बनाकर दी हैं। आज जब भी उससे इतनी अच्छी कारीगरी की वजह पूछी जाती है, तो वह कहता है, ‘हम सभी में एक न एक खास गुण होता है, जिसे निखारने पर जीवन का उद्देश्य भी बन सकता है। मैंने भी यहीं किया और नतीजा सामने है।’ वाकई मेरे दोस्त की यह कहानी पूरे समाज के लिए एक संदेश है।
जिसको हो खुद पर विस्वास इश्वर देता है उसका साथ
Admin
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मेहनत कभी बेकार नहीं जाती है।
ردحذفbahut hi acchi post
ردحذفस्वाधीनता दिवस की हार्दिक मंगलकामनाएं।
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