एक बार शंकर जी और पार्वती माता स्वर्गलोक की सैर पर निकले। पार्वती जी ने दूर एक आदमी को भूख से तड़पते हुएदेखा। उसे तड़पते हुएदेखकर भी शंकर भगवान आगे बढ़ गए। पार्वती जी से रहा न गया। उन्होंने इस पर प्रश्न किया कि आखिर क्यों शंकर भगवान ने उस आदमी के प्रति दया न दिखाईं। जबकि उन्हें तो करुणा का सागर कहा जाता है।
शंकर भगवान बोले, ‘तुम जानती नहीं हो, देवि। मनुष्य की आदत है अपने मन के बहकावे में आ जाना। इस आदमी की सहायता हेतु मैंने कई बार परीक्षा ली, हर बार यह उस परीक्षा में असफल साबित हुआ। कभी अपने मन के कारण, तो कभी अपने कर्मों के कारण।’ पार्वती जी को विश्वास न हुआ, इसलिएउन्होंने शंकर भगवान से उस आदमी की सहायता करने का निवेदन एक बार फिर किया।
शंकर भगवान ने उस आदमी की एक बार फिर परीक्षा ली। उन्होंने उस आदमी को अचानक खूब सारे खाने और अनाज से घेर दिया। वह आदमी इतना खाना देखकर प्रसन्न हो गया और तुरंत अपनी पेट की भूख शांत कर ली। कुछ ही क्षणों में भगवान शंकर वहां भूखे के रूप में पहुंचे और खाना मांगा। पर उस व्यक्ति ने अपने भविष्य की सुरक्षा के कारण उनकी मदद न की और देखते ही देखते उसका सारा अनाज गायब हो गया। शंकर भगवान पार्वती जी से बोले, ‘देवि, जिसे पता हो कि भूख क्या होती है, वह असमर्थकी सहायता न करे, उसकी सहायता क्या करना। दूसरों के प्रति करुणा तो इनसानी धर्महै। पर यह व्यक्ति उसे भी नहीं निभा पा रहा है।’ यह देखकर पार्वती जी चुप हो गईं और शंकर जी के साथ आगे चल दीं।
द्मद्मद
...और देवी पार्वती चुप हो गईं
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बधाई |
ردحذفसुन्दर भावों की अभिव्यक्ति
बधाई |
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deepak ji
ردحذفbahut hi sateek aur prerana deti hui aapki kahani bahut bahut achhi lagi.
aapne bilkul sach likha hai ki-------
मतलबी इंसान जिसकी सहयता भी नहीं करते भगवान्
bahut hi achhi prastuti
badhai swikaren
poonam
seekh deta hua prasang.
ردحذفसोचने पर विवश करती सुन्दर रचना .
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