बैरागी राजा और लालची ब्रह्ममण





एक राजा था जो रोज सुबह उठ कर घुमने निकलता था , तो उसे दरवाजे पर सुबह पहला जो भी याचक  मिलता था उसे वोह मुँह मागा दान देता था एक दिन जैसे ही राजा अपने दरवाजे के पास आया उसे एक ब्रह्मण याचक दिखाई खड़ा  दिया राजा ने रुक कर ब्रह्ममण से पूछा बताइए आपको क्या चाहिए  ? ब्रह्मण ने संकोच वस् जो भी आप देगे मुछे स्वीकार होगा ? इस पर राजा ने आग्रह किया की आप खुद बताये की आप को क्या चाहिए ! अतः ब्रह्ममण सोच में पड़ गया की वोह क्या मागे धीरे धीरे उसके अन्दर लालच का बिज उगने लगा और ब्रह्ममण ने कहा की मुछे कुछ समय चाहिए  बताने के लिए , इस पर राजा ने कहा ठीक है ! और राजा ने उसे समय दे दिया और राजा घुमने  चले गए ! अब ब्रह्ममण के मन में विचार आया की, मै एक याचक और वोह एक राजा क्यों न सारा राज-पाट माग लिया जाये जिससे फिर किसी से कुछ मागने की जरूरत नहीं पड़ेगी और लोग मेरे सामने याचक होगे राजा के वापस आकर पूछने पर उसने छट से कहा वह राज्य चाहता है!! राजा ने कहा प्रिय वर  अपने मुछे तो भारहीन कर दिया आप नहीं जानते की मै कितने दिनों से प्रतिच्छा में था की कब इससे मुक्त होऊ ! मै न सो पाता हु  न चैन से खा पाता हु  हर पल मुछे मेरी प्रजा की चिंता रहती है , हर पल मै अपने देश के शत्रुओ के बारे में सोचता  रहता हु न तो मुछे भगवान् भजन का समय मिलता है न उसके द्वारा बनाये इस संसार को देखने का , यह सब सुनकर ब्रह्मण की आखे खुल गई उसे राजा की महानता का अनुभव हुआ और स्वयं पर पछतावा एक राजा हो कर भी राजा को अपने राज्य पर कोई मोह नहीं था लेकिन वोह ब्रह्मण होते हुए भी मोह में फस गया जब राजा ने सारा राज्य ब्रह्मण को देने के लिए मंत्रियो से राज्य देने की प्रक्रिया शुरू करने के लिए पीछे मुड़े तब तक ब्रह्ममण जा चूका था ????

8 تعليقات

  1. moh maya hai hi aisee bala ke isse bachna behad kathin karya hai.aapne bahut sarthak prastuti ki hai .aabhar.

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  2. दीपक जी,
    राजा के सिरदर्द को सन्यासी क्या जाने |

    आभार,

    अच्छी-प्रस्तुति ||

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  3. वह कहानी का ब्राह्मण था चला गया आज के युग में सिंघासन पर बैठ जाता.

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  4. aapki yah kahani waqai me prerana dayak hai .uske bete ne bilkul saty kaha ki yadi uski pahli galti par hi use samjhaya jaata to sthiti kuchh aur hi hoti.
    bahut hi badhiya prastuti.
    poonam

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