मेरे शहर की ही है। एक मजदूर अपने ार से करीब पांच किलोमीटर दूर एक कारखाने मे प्रतिदिन पैदल आता था। कारखाने से शाम को छुट्टी होने पर रास्ते मे एक दुकान से रोज मूंगफली खरीदकर खाते हुए ार पहुंचता था। इस दौरान दुकानदार से उसकी जान-पहचान बढ़ गई। एक दिन दुकानदार ने उससे पूछा, ‘आप कहां काम करते है? आपके कितने बो है?’ मजदूर ने बताया, ‘यहां से थोड़ी दूर जो लोहे का कारखाना है, मै उसी मे काम करता हूं। ार पर पनी और चार बो है, जिनकी सारी जिम्मेदारी मुझ पर ही है।’ दुकानदार ने पूछा, ‘कुछ पैसे बचा लेते हो या सारे खर्च हो जाते है?’ इस सवाल पर मजदूर थोड़ा मुस्कराते हुए बोला, ‘अरे साहब, बचाना तो दूर की बात है, बड़ी मुश्किल से दो रोटी नसीब हो पाती है।’ दुकानदार जब मूंगफली तौलकर मजदूर को देता, तब उसमे से एक मूंगफली निकालकर अलग पैकेट मे रखता जाता था। इस बात से मजदूर अनजान होता था।
एक दिन जब मूंगफली का पैकेट भर गया, तो दुकानदार ने उसकी खरीदी हुई मूंगफली खरीदकर वह भरा हुआ पैकेट भी उसे दे दिया। फिर बोला, ‘यह भी आपकी ही मूंगफली है।’ मजदूर ने हैरान होते हुए कहा, ‘मैने इतनी यादा मूंगफली खरीदी ही नही है। फिर यह मेरी कैसे हो सकती है?’ दुकानदार हंस पड़ा और बोला, ‘असल मे मै जब रोज आपकी मूंगफली तौलता था, तो हर दिन एक मूंगफली निकाल लेता था। इसी से यह पैकेट भर गया।’ फिर वह मजदूर को समझाते हुए बोला, ‘इसी तरह अगर आप अपनी कमाई मे से रोज कुछ निकालकर रखेगे, तो एक दिन आपके बचत की थैली भी भर जाएगी।’ अब मजदूर की आंखे खुल गईं और उसने बचत के इस गुर को सीख लिया।
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किसी ने सच ही कहा है बूंद -२ से घड़ा भरता है
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बहुत-बहुत आभार |
ReplyDeleteबहके ये मन ख़ुशी में ||
सही बात है। आभार।
ReplyDeleteकिसी ने सच ही कहा है बूंद -२ से घड़ा भरता है
ReplyDeletebahut achchhi shikshayen de rahe hain deepak aap.aabhar.
बहुत सच कहा है..
ReplyDeleteयह लघुकथा तो बहुत प्रेरणा देने वाली है।
ReplyDeleteसच में बचत करने का बेहतरीन तरीका बताया है
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